बिर्रा - फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा की रात्रि होलिका दहन किया जाता है।दुसरे दिन प्रतिपदा को रंग गुलाल खेलकर रंगोत्सव मनाया जाता है। इसलिए कहा जाता है कि जीत हुई सच्चाई की जल गई बुराइयां आप सभी को होलिका दहन और रंगों का पर्व होली की बहुत बहुत बधाइयां।उक्त बातें राजपुरोहित पं जितेन्द्र तिवारी ने क्षेत्रवासियों को हार्दिक बधाई देते हुए कहा कि होली का पर्व भक्त प्रह्लाद की भक्ति और परमात्म प्रेम की विजय के प्रतीक पर्व के रूप में मनाया जाता है। जहां भक्त प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप ने स्वयं को भगवान मानकर अपनी प्रजा को भी स्वयं सिद्ध भगवान मानने मजबूर किया करता था परन्तु उसका पुत्र भक्त प्रह्लाद ने श्री विष्णु, हरि, नारायण को ही भगवान मानकर भगवान के प्रति अपना समर्पण भाव बनाए रखा। भक्त प्रह्लाद के इस विचार को बदलने हिरण्यकश्यप ने न जाने कितना प्रयास किया पर भक्त प्रह्लाद का हृदय नहीं बदला अंत में उसकी बुआ जिसका नाम होलिका था उसके गोद में बिठाकर अग्नि परीक्षा लिया पर भगवान का भक्त प्रह्लाद का कुछ नहीं बिगड़ा बल्कि होलिका जलकर राख हो गई।तभी से सच्चाई की जीत के प्रतीक के रूप में होलिका दहन और होली पर्व मनाया जाता है।
उन्होंने बरसाने की नगरी वृंदावन की राधाकृष्ण की प्रेम कहानी को जिसे हम महारास को भी होली महोत्सव के रूप में बताया।अंत में मथुरा की खुशबू गोकुल का हार, वृंदावन की सुगंध बरसाने की फुहार।राधा की उम्मीद कान्हा का प्यार, बधाई हो आप सभी को रंगों का पर्व होली का त्यौहार।
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